आखिर किस मजबूरी में आंध्र के सीएम जगनमोहन खत्म करना चाहते हैं विधान परिषद?
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी (फाइल फोटो)
Why Jagan Mohan Reddy wants to scrap Legislative Council , आंध्र की 58 सदस्यीय विधान परिषद में जगन मोहन रेड्डी की पार्टी ( YSRCP ) अल्पमत में है, जबकि उनके विरोधी चंद्रबाबूनायडू की तेलगू देशम पार्टी को बहुमत है. ऐसे में जगन मोहन के ड्रीम प्रोजेक्ट पर ब्रेक लग जाता है.
आंध्र प्रदेश विधानसभा ने अपने उच्च सदन यानी विधान परिषद को खत्म करने का प्रस्ताव पास कर दिया है. इसके साथ ही यह बहस छिड़ गई है कि क्या कोई विधानसभा ऐसा कर सकती है? संविधान विशेषज्ञ का जवाब हां में है, लेकिन किसी विधानसभा को सिर्फ इसका प्रस्ताव पास करने का ही अधिकार है. इसकी फाइनल मुहर केंद्र सरकार ही लगाएगी. दरअसल, आंध्र की 58 सदस्यीय विधान परिषद में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी (YSRCP) अल्पमत में है, जबकि उनके विरोधी चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी को बहुमत है
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने गुरुवार को नयी दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई मुलाकात में राज्य के कई लंबित मुद्दों को उठाया लेकिन परिषद को समाप्त करने पर बात नहीं की. वाईएसआर कांग्रेस सरकार ने इससे पहले कहा था कि परिषद पर हर साल होने वाला 60 करोड़ रुपये का खर्च सरकारी खजाने पर बोझ है.
जगन के मुख्य सहयोगी और सरकारी सलाहकार सज्जला रामकृष्ण रेड्डी ने कहा, “प्रस्ताव उनके (केंद्र) के पास है. हमें देखना होगा. यदि यह (परिषद की समाप्ति) होता है तो हम इसके लिए तैयार हैं.” उन्होंने संकेत दिया कि यदि परिषद समाप्त नहीं की जाती है तो सरकार इसके लिए भी तैयार है और उच्च सदन पहले की तरह काम करेगी.
आंध्र प्रदेश विधानसभा ने 27 जनवरी 2020 को एकमत से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया था कि परिषद को समाप्त कर दिया जाए. इस बाबत मुख्यमंत्री ने कहा था कि उनका निर्णय “केवल लोगों की जरूरतों और सरकार की जिम्मेदारी के मद्देनजर था.”
जगन मोहन रेड्डी सरकार का रुख था कि विधान परिषद के सदस्य “राज्य की जरूरतों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते.” संविधान के अनुच्छेद 169 (1) के तहत विधान परिषद को समाप्त करने के लिए संसद को कानून पारित करना होता है.
जगन ने कहा था, “हर साल हम परिषद को चलाने के लिए 60 करोड़ रुपये खर्च करते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है. हम लोगों के हितों की रक्षा के लिए परिषद को समाप्त करने का प्रयास कर रहे हैं। परिषद का होना अनिवार्य नहीं है। यह हमने बनाई थी और यह केवल हमारी सुविधा के लिए है.”
उस समय परिषद में सत्ताधारी वाईएसआर कांग्रेस के केवल नौ सदस्य थे और विपक्षी दल तेलुगु देसम को बहुमत हासिल था. राज्य सरकार, विधान परिषद से कुछ विधेयक पारित कराने में भी विफल रही थी. गत वर्ष बताया जा रहा था कि मुख्यमंत्री ने विधान परिषद को समाप्त करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री से बात की थी लेकिन कुछ नहीं हुआ.
भारत का सरकार चलाने का तरीका ‘बाईकैमरल’ है, यानी दो सदन पर टिका हुआ. केंद्र में लोकसभा और राज्यसभा हैं. राज्य में विधानसभा और विधान परिषद. विधानसभा के लिए सदस्य हम वोट देकर चुनते हैं. इससे सीधे तौर पर जुड़े रहते हैं. इसी वजह से इसके काम-काज के बारे में मोटा-मोटा हम जानते ही हैं.
अब बात विधान परिषद की. विधान परिषद की जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि विधानसभा के कई फैसले जल्दबाजी में लिए हुए हो सकते हैं. ऐसे में एक सदन ऐसा भी हो, जो विधानसभा के फैसले को थोड़ा क्रिटिकली देख-परख सके.
अब आंध्र प्रदेश में क्या हुआ
विधान परिषद को खत्म करने का प्रस्ताव सोमवार यानी 27 जनवरी को प्रदेश की विधानसभा से पास हो गया. 176 में से 133 वोट इसके पक्ष में पड़े. वोटिंग के बाद सदन अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया.
फैसले का विरोध भी हुआ. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के विधायकों ने विधानसभा का बहिष्कार किया.
अभी प्रोसेस पूरा नहीं हुआ है
विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर दिया है. अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. राज्यपाल ने भी अप्रूवल दे दिया तो देश की संसद के सामने रखा जाएगा. वहां से भी पारित हो गया, तो कहीं जाकर आंध्र प्रदेश से विधान परिषद हटेगी.
इस पूरे काम में तीन से छह महीने लग सकते हैं. तब तक परिषद पहले की तरह ही काम करती रहेगी.
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