तमाम अटकलों और सियासी सुगबुगाहट के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते नजर आ रहे हैं कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा दो-तिहाई बहुमत से जीत हासिल करेगी. प्रदेश में मतभेद और मनभेद की सियासी खींचतान के बीच नेतृत्व में बदलाव की मांग के 'छौंक' ने राजनीतिक पंडितों का जायका दोगुना कर दिया है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) से पहले सूबे की सियासी आबोहवा में इन दिनों एक अजीब सी तपिश महसूस की जा रही है. सत्तारुढ़ दल भाजपा में बैठकों और मुलाकातों का एक लंबा सिलसिला चल रहा है. बीते महीने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और संघ के पदाधिकारियों की मीटिंग से शुरू हुआ चर्चाओं का यह दौर अब उत्तर प्रदेश भाजपा के ट्विटर अकाउंट से पीएम मोदी की तस्वीर गायब होने तक आ गया है. सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अदावत से लेकर उत्तर प्रदेश के 'विकल्पहीन' होने तक की खबरों से चर्चाओं का बाजार गर्म नजर आ रहा है. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश का सियासी महत्व भाजपा को बहुत अच्छे से पता है.
विस्तार
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने विपक्षी दलों के खेमे में एक उम्मीद पैदा कर दी थी। वह उम्मीद थी कि अगर वह गैर-भाजपाई वोटरों को एक साथ सहेजने में सफल हो जाता है तो उसके लिए भाजपा को रोकना आसान हो जाएगा। लेकिन पश्चिम बंगाल के बाद पहले ही बड़े चुनाव में यह फॉर्मूला सफल होता नहीं दिख रहा है। अपने-अपने राजनीतिक कारणों से उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और कांग्रेस का एक साथ आना संभव होता नहीं दिख रहा है। इस कारण वोटरों का ध्रुवीकरण होना भी संभव नहीं होगा।
माना जाता है कि बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं के लिए ममता बनर्जी पहली पसंद थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा चयन कर पाना उनके लिए भी आसान नहीं होगा। पूरे प्रदेश में लगभग 19.3 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम मतदाताओं के लिए किसी एक राजनीतिक दल को वोट देने की स्थिति में न होने से इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।
योगी से भाजपा को क्या फायदा मिल सकता है?
मास लीडर: उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास नेताओं और राजनेताओं की कमी नही है. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा के पास उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के विकल्प के तौर पर दर्जनों नेता हो सकते हैं. मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, राजनाथ सिंह समेत भाजपा के पास नामों की एक लंबी फेहरिस्त है, लेकिन इनमें से एक भी 'जननेता' यानी मास लीडर नहीं है. ये सभी नेता एक खास जाति की राजनीति के समीकरणों में फिट बैठते हैं. जातीय समीकरणों की राजनीति के मशहूर उत्तर प्रदेश में लोगों को जाति से ऊपर हिंदूत्व के नाम पर एकजुट करने में शायद ही ये नेता सफल रह सकें. 'हिंदू हृदय सम्राट' की छवि रखने वाले कल्याण सिंह अब इस अवस्था में नही हैं कि वह भाजपा के लिए चुनावी चेहरा बन सकें. बीते चार सालों में योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह की 'हिंदू हृदय सम्राट' वाली छवि को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है. योगी आदित्यनाथ अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में संन्यासी से राजनेता और अब जननेता बन चुके हैं.
सभी को साथ लेकर जीतेंगे चुनाव
वहीं, राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव तारिक मुस्तफा का कहना है कि जनता ने बार-बार यह दिखा दिया है कि वह किसी एक दल को नहीं चुनती। मुस्लिम मतदाताओं के मामले में भी अलग-अलग समीकरणों में उसकी पसंद बदलती रही है। इस बार भी जो उसके लिए बेहतर उम्मीदें लेकर आएगा, उसका साथ उसी को मिलेगा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम मतदाताओं के लिए वही पसंद बनेगा जो उनके लिए विकास की ज्यादा बेहतर संभावना पैदा कर सकेगा।
उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों के आधार पर ही मुस्लिम मतदाता यह तय कर सकते हैं कि उनकी पसंद में पहले नंबर पर कौन आ सकता है, लेकिन अभी से इसकी अटकलबाजी कर पाना मुश्किल है। उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल अभी से इस वर्ग की पहली पसंद बने हुए हैं।
मुस्लिम जनसंख्या कितनी
माना जाता है कि मुस्लिम समुदाय के लोग भाजपा के पक्ष में बहुत कम मतदान करते हैं। अगर किसी दल विशेष के पक्ष में यह मतदाता घूम जाए तो उसके लिए यह वोट बैंक एक बड़ी लीड साबित हो जाती है। यही कारण है कि सभी दल इन्हें अपने साथ जोड़ने की कोशिश करते हैं।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश में हिदुओं की जनसंख्या 79.73 फीसदी और मुस्लिमों की जनसंख्या 19.3 फीसदी के करीब थी। मुस्लिम शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक सभी जगह कम-अधिक संख्या में रहते हैं, लेकिन कुछ जिले ऐसे हैं जहां इनकी आबादी काफी अधिक है और यही किसी मतदाता की जीत या हार का निर्णय करते हैं
राम मंदिर और युवा: भाजपा की सियासत के केंद्र में दशकों से राम मंदिर का मुद्दा अहम रहा है. सुप्रीम कोर्ट से फैसले के बाद यह भाजपा के लिए 'तुरुप का पत्ता' बन गया है. राम मंदिर निर्माण की नींव रख दी गई है. भाजपा ने देशभर में समर्पण निधि अभियान के जरिये लोगों की धार्मिक चेतना में इस मुद्दे को 'सुसुप्तावस्था' में जाने से रोकने का सफल प्रयास भी कर दिखाया है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश के सियासी माहौल को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला मुद्दा राम मंदिर हो सकता है. योगी आदित्यनाथ की 'संन्यासी' छवि से राम मंदिर के मुद्दे को और धार मिलेगी. यूपी में हर आयु वर्ग के लोगों और खासकर बुजुर्गों को राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सबसे अधिक प्रभावित करेगा. वहीं, योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी के जरिये युवाओं के बीच में एक खास जगह बनाई है. योगी के इस निजी संगठन में जातीय व्यवस्था को किनारे रखकर युवाओं को हिंदुत्व के नाम पर बढ़ावा दिया जाता है. विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों की तरह ही हिंदू युवा वाहिनी के जरिये हिंदू केंद्रित राजनीति का फलसफा आसानी से हासिल हो जाता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें